Panchatantra Stories: पंचतंत्र की कहानियाँ प्राचीन भारत की सबसे पुरानी जीवित दंतकथाएँ हैं. पंचतंत्र की ये रंगीन कहानियाँ सदियों से दुनिया भर में फैली हैं, खासकर बच्चों के लिए सोने के समय सुनाई जाने वाली कहानियों के रूप में.
हम आपके लिए यहां पेश कर रहे हैं, ऐसे ही Panchatantra Stories जो की ऐसे ही लोकप्रिय लघु कथाओं पर आधारित है जिन्हें पढ़ कर आनंद भी आये और शिक्षा भी मिलेगी इसे.
यद्यपि Panchatantra Stories को अलग-अलग कहानियों में विभाजित करना इसके मजेदार सार को हटा देता है, निम्नलिखित लघु कहानियों में चित्र और नैतिक संदेश शामिल हैं, खासकर बच्चों के लिए.
PANCHATANTRA STORIES – पंचतंत्र की कहानियाँ हिन्दी में
बन्दर और लकड़ी का खूँटा (The Monkey and The Wedge Story Panchatantra Stories in Hindi)
एक बार एक व्यापारी था जिसने अपने बगीचे में मंदिर बनाने काम कर रहा था. मंदिर में काम बहुत ज्यादा था इसलिए कई बढाई और राजमिस्त्री को मंदिर बनवाने के काम में लगवाया था.
यहाँ वहाँ लकड़ी के लठ्टे रखे हुए थे और लठ्टे व् शहतीर चीरने का काम हो रहा था. जितने भी मजदुर काम में लगे थे वो दोपहर का भोजन करने ले लिए शहर जाते थे, जब वो खाना खाने जाते थे उस समय वहाँ पर कोई नहीं होता था.
एक दिन रोज की तरह दोपहर का भोजन करने के लिए सभी मजदुर काम छोड़ कर चले गए. एक लठ्टा आधा चिरा रह गया था. उस आधे चीरे लठ्टे में मजदुर एक लकड़ी का किला फंसाकर गए थे, ताकि दोबारा आरी घुसाने में आसानी हो और काम करने में देरी न हो.
उसी वक़्त बंदरों का एक झुंड उछलता-कूदता वहाँ आया. उनमें एक बहुत शरारती बन्दर था. जो किसी भी चीजों को बिना काम के छेड़खानी करता रहता था.
शैतानी करना उसकी आदत थी. बंदरों के सरदार ने सभी बंदरों को वहाँ पड़ी सभी चीजों को न छेड़ने का आदेश दिया. सारे बन्दर पेड़ों पर चले गए, लेकिन वह शैतान बन्दर नज़र बचाके वहीँ शैतानी करता रहा.
फिर उस शैतान बन्दर की नज़र आधे चीरे लठ्टे पर गयी. वह तुरंत उछल उस लकड़ी के लठ्टे पर गया और बीच में अडाए गए कील को देखने लगा. फिर सामने पड़ी आरी को देखा तो उसे उठा कर लकड़ी पर रगड़ने लगा.
उसके रगड़ने से किर्र किर्र की आवाज निकलने लगी तो उसने गुस्से से आरी को वहीँ फेंक दिया. उन बंदरों की भाषा में किर्र किर्र का अर्थ था निखट्टू. शैतान बन्दर फिर से लठ्टे के बीच में अडाए गए कील को देखने लगा.
तब उसके मन में विचार आया की इस कील को लठ्टे के बीच से हटा दिया जय तो क्या होगा. वो कीले को पकड़ कर बाहर निकलने के लिए जोर लगाने लगा. लेकिन वो कील मजबूती से लठ्टे में फंसा हुआ था. इसलिए निकल नहीं रहा था.
बन्दर ने खूब जोर लगाया और उस कीले को हटाने लगा. बहुत जोर लगाने पर कील धीरे धीरे खसकने लगा इसी बीच उस शैतान बन्दर का पूंछ उस दोनों पाटों के बीच आ गई थी.
कीले के खिसकने पर बन्दर और ज्यादा जोर जोर से हिलाने लगा. और जैसे ही वो कील उस लठ्टे से निकल गया दोनों चीरे फटाक से आपस में चिपक गए और उस शैतान बन्दर की पूंछ उसमें फंस गई. शैतान बन्दर चिल्ला उठा.
उसी समय मजदुर दोपहर का भोजन करके लौटे. उनको देखकर शैतान बन्दर भागने के लिए जोर लगाया तो उसकी पूंछ टूट गई. जोर से चीखता हुआ शैतान बन्दर टूटी पूंछ लेकर सरपट भागा.
सियार और ढोल (The Jackal and the Dhrum Panchatantra Stories in Hindi)
किसी समय पश्चात एक जंगल के समीप दो राजाओं के बीच घोर युद्ध हुआ. उसमें से एक जीता और दूसरा हार गया. उनकी सेनाएं नगरों की और लौट गईं.
सेना का एक ढोल पीछे रह गया. उस ढोल को बजा-बजाकर सेना के साथ गए भांड और चारण रात को वीरता की कहानियाँ सुनाते थे.
युद्ध वाले स्थान पर एक दिन जोर से आंधी आई. आंधी के जोर से वह ढोल लुढकता-लुढकता एक सूखे पेड़ के पास जाकर अटक गया.
उस पेड़ की सुखी टहनियां ढोल से इस तरह से आकर सट गयी थी की तेज हवा चलने पर ढोल पर जाकर टकरा जाती थी और ढमाढम की आवाज निकलने लगती थी.
एक सियार उस स्थान में धूम रहा था. तभी उसने उस ढोल के बजने की आवाज सुनी. वह बहुत डर गया. ऐसी अजीब सी आवाज निकालने उसने किसी जानवर को नहीं सुना था.
वह सोचने लगा की या कैसा जानवर है, जो ऐसी जोरदार ढमाढम की आवाज निकालता है. सियार छिप-छिप कर उस ढोल को देखता रहता की वो जानवर उड़ने वाला है या चार टांगों में चलने वाला.
एक दिन सियार झाड़ी से छुप कर ढोल को देख रहा था. तभी एक गिलहरी पेड़ के नीचे उतरती हुई उस ढोल में कूद गयी तो हलकी सी ढम की आवाज हुई.
तो सियार ये सब देख कर बडबडाया ओह तो या कोई बड़ा हिंसक जानवर नहीं है. इसे भला मैं क्यों डरूं.
सियार धीरे-धीरे ढोल के निकट गया और उसे सूंघने लगा, ढोल का न कहीं सिर और न पैर नज़र आया उसे. तभी हवा चली और पेड़ की टहनियां ढोल पर टकराई तो ढमाढम की आवाज हुई, सियार जोर से उछल कर पीछे झाड़ी में जा गिरा.
सियार को समझ में आया की यह तो बाहर का खोल है, जानवर तो इस खोल के अन्दर है. आवाज से लग रहा है की कोई मोटा ताजा जानवर है. इसलिए जोरदार ढमाढम की आवाज निकालता है.
और सियार अपनी माँद में चला गया और सियारिन को कहा ओ सियारिन दावत खाने के लिए तैयार रहो. एक मोटा ताजा शिकार का पता करके आया हूँ.
सियारिन ने कहा तुम उसे मरकर क्यों नहीं सात लाये.
सियार बोला मैं तेरी तरह मुर्ख नहीं हूँ. वह एक खोल के भीतर छिपा हुआ है. खोल ऐसा है की उसमें दो तरफ सुखी चमड़ी के दरवाजे हैं.
यदि मैं एक तरफ के दरवाजे से उसे पकड़ने की कोशिश करता तो वह दुसरे दरवाजे से निकलकर भाग जाता.
रात होते ही दोनों उस ढोल के सामने गए निकट पहुचते ही टहनियों के टकराने से ढम-ढम की आवाज निकली. सियार सियारिन के कान बोला सुनी कितनी जोर की आवाज है तो सोंचो जानवर कितना मोटा ताजा होगा.
दोनों ढोल को सीधा कर उसके दोनों ओर बैठे और लगे दांतो से ढोल के दोनों चमडी वाले भाग के किनारे फाडने. जैसे ही चमडियां कटने लगी, सियार बोला ‘होशियार रहना.
एक साथ हाथ अंदर डाल शिकार को दबोचना हैं.’ दोनों ने ‘हूं’ की आवाज़ के साथ हाथ ढोल के भीतर डाले और अंदर टटोलने लगे. अदंर कुछ नहीं था. एक दूसरे के हाथ ही पकड में आए. दोंनो चिल्लाए ‘हैं! यहां तो कुछ नहीं हैं. और वे माथा पीटकर रह गए.
मुर्ख साधु और ठग (The Foolish Sage & Swindler Panchatantra Stories in Hindi)
किसी समय की बात है, एक गाँव के मंदिर में नारायण देव नाम का एक प्रतिष्ठित साधु रहता था. गाँव में सभी उसका सम्मान करते थे.
उस साधु को गाँव वाले लोग दान में तरह तरह के वस्त्र, उपहार, खाद्य सामग्री और पैसे देते थे. उन वस्त्रों को बेचकर साधु ने काफी धन इकठा कर लिया था.
साधु किसी पर भी विश्वास नहीं करता था और हमेशा अपने धन की सुरक्षा में लगा रहता था. वह अपने धन को एक पोटली में रखता था और उसे हमेशा अपने साथ लेकर ही चलता था.
उसी गाँव में एक ठग भी रहता था. बहुत दिनों से उसकी नज़र साधू के धन पे थी. ठग हमेशा साधू का पीछा करता था. लेकिन साधू उस पोटली को कभी अपने से अलग नहीं करता था.
आखिकार उस ठग ने एक शिष्य का वेश धारण कर उस साधू के पास गया और मिन्नत करने लगा की उसे अपना शिष्य बना लें. क्योंकि वह ज्ञान प्राप्त करना चाहता था.
साधू फ़ौरन तैयार हो गया और वह ठग उस साधू के साथ वहीँ मंदिर में रहने लगा.
ठग मंदिर की साफ सफाई से लेकत अन्य सारे काम करता था और ठग ने साधू की भी खूब सेवा की और जल्दी ही उसका विश्वास जीत लिया.
एक दिन साधू को पास के गाँव में एक आयोजन के लिए आमंत्रित किया गया, साधू ने वह आमंत्रण में जाने के लिए हाँ कर दी और उस दिन साधू अपने शिष्य के साथ आयोजन में भाग लेने के लिए चल दिया.
रास्ते में एक नदी पड़ी और साधू ने स्नान करने की इक्षा जाहिर की. उसने पैसों की पोटरी को एक कम्बल के भीतर रख दिया और नदी के किनारे रख दिया.
उस ठग से सामान की रखवाली करने को कहा और खुद साधू नहाने चला गया. ठग को कितने दिनों से इस वक़्त का इंतजार था. जैसे ही साधू नदी में डुबकी लगाने लगा, वो ठग पैसों को पोटरी को लेकर भाग गया.