रियल लाइफ उदाहरण से सीखें सबसे सिक्योर इन्वेस्टमेंट क्या है?

इस पोस्ट की शुरुआत एक रियल लाइफ उदहारण से करते हैं. एक है जॉब वाले अजय और दूसरे हैं बिजनेसमैन विजय.

Coffee Can Investing by Saurabh Mukherjea Book Summary in Hindi

अजय ने 1999 में जॉब से शुरुआत की शादी हुई दो बच्चे हुए उन्होंने सेविंग के पैसे Real Estate, Gold और FD में लगाए, अपने कुछ दोस्तों की देखा देखी स्टॉक मार्केट में भी कुछ इन्वेस्ट किया. पर बहुत कम रेशो में और उसमें भी वह मार्केट फ्लकचुएट होने पर नुकसान के डर से तुरंत शेयर बेच दिया करते थे.

अब बच्चों के कॉलेज की पढ़ाई का टाइम आ गया था ऊपर से 50 की उम्र तक आते-आते जब उनको यह समझ आया कि अब रिटायर होने में कुछ ही साल बचे हैं, तो वह बस हाथ मलते रह गए क्योंकि उनके पास सेविंग के नाम पर कुछ खास नहीं था. जिस प्रॉपर्टी में उन्होंने बड़े जोश के साथ पैसे लगाए थे उसकी कीमत भी Real Estate में आई मंदी की वजह से लगभग 40 % तक घट गई थी.

उनके आज के खर्चे के हिसाब से भी देखें तो साल के 20 लाख रुपये के हिसाब से उनको आगे कम से कम 6 करोड़ की जरूरत थी. PF अकाउंट और सारे इन्वेस्टमेंट मिलाकर भी उनके पास मुश्किल से 2.5 करोड़ ही बनते थे, जबकि उनके पास रिटायर हो जाने के बाद इनकम का कोई दूसरा सोर्स भी नहीं था और अभी तो इसमें बच्चों की शादी का खर्च भी नहीं जुड़ा हुआ था.

बिजनेसमैन विजय ने भी लगभग ऐसी ही गलती की थी, अपने बिजनेस को और आगे ले जाने की सोच से वो इनकम का ज्यादातर पैसा बिजनेस में Rotate करते रहते थे. कुछ सेविंग गोल्ड और प्रॉपर्टी में भी की लेकिन आगे टाइम बदला और जब उनके रिटायर होने की एज आई तब तक बढ़ते कंपटीशन की वजह से बिजनेस भी लड़खड़ा लगा था.

बिजनेस की जरूरत की वजह से एक घर तो पहले ही बिक चुका था अब बस एक फ्लैट था जिसमें वह अपनी वाइफ के साथ रहते थे इनके दोनों बच्चे फॉरेन में पढ़ रहे थे, इसलिए फिलहाल इनके बिजनेस में हाथ बटा वाला भी कोई नहीं था. उन्होंने जब आने वाले टाइम में होने वाले खर्चों का हिसाब लगाया तो वह हैरान रह गए. अगर वह बिजनेस बेच भी देते तो आगे की लाइफ जीने लायक पैसे मिलते नहीं दिख रहे थे.

अजय और विजय एक ही नाव पर सवार थे उनके पास अपने खर्चों की कमी और लाइफ स्टाइल में बदलाव के सिवा कोई दूसरा तरीका नहीं था, पर इससे भी कहां तक हेल्प मिल पाती जब ये दोनों किसी इन्वेस्टमेंट एडवाइजर से मिले तो उसने पूरी स्टडी के बाद एक हैरान कर देने वाली बात बताई. दोनों के किए गए इन्वेस्टमेंट ने सिर्फ 4 से 5 % एनुअल रिटर्न दिए थे. जबकि इस दौरान मार्केट ने 15 % से भी ज्यादा रिटर्न दिया था.

एडवाइजर के हिसाब से 1999 में अगर ये लोग मार्केट में ₹1 लाख लगाते तो आज की डेट में वो लगभग 35 लाख हो गया होता. अब एडवाइजर ने उनको एडवाइस दी कि आप स्टॉक मार्केट में इन्वेस्ट कीजिए और वो भी लंबे टाइम के लिए.

इस उदहारण से आप सीख ले और ऐसी कोई भी गलती करने से बचे नहीं तो तीसरा नाम आपका होगा आज की इस बुक समरी में हम कॉफी कैन इन्वेस्टिंग बुक के जरिए ऐसे ही लेसन सीखने वाले हैं ताकि आप स्टॉक मार्केट से अच्छा प्रॉफिट कमाने का सही तरीका समझ सके.

सबसे सिक्योर इन्वेस्टमेंट क्या है?

सबसे पहले यह समझते हैं कि सबसे सिक्योर इन्वेस्टमेंट क्या है अक्सर लोग यह मानते हैं कि रियल एस्टेट में इन्वेस्ट करना सबसे सिक्योर होगा. लोग यह सोचते हैं कि आप प्रॉपर्टी में पैसे लगा दो जब कभी भी इसे बेचेंगे आपको कुछ ना कुछ प्रॉफिट ही होगा पर यह बात सच नहीं है बल्कि रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट के सबसे रिस्की प्रोडक्ट में से एक है.आप पिछले कुछ सालों में और खासकर 2013 के बाद यह खबरें सुन और पढ़ रहे होंगे कि रियल एस्टेट में मंदी आई हुई है. अमेरिका ने 2005 से 2011 के दौरान रियल एस्टेट बूम और फिर डाउनफॉल का ऐसा नजारा देखा जहां लोगों ने अपना सब कुछ गवा दिया.

स्टडीज बताती हैं कि स्विटजरलैंड, जापान, न्यूजीलैंड, कनाडा, स्वीडन और नॉर्वे जैसे कई देश रियल एस्टेट बबल के सबसे हाई रिस्क पर चल रहे हैं. किसी प्रॉपर्टी की कीमत के लिए मार्केट की इकॉनमी के अलावा बड़ा रोल लोकेशन का भी होता है. प्रॉपर्टी की कीमत 5 से 7 % बढ़ भी गई तो भी ये नुकसान की गिनती में ही आएगा. क्योंकि प्रॉपर्टी में हम एक अच्छी बड़ी रकम लगा देते हैं और इतने सारे पैसों पर इतना छोटा प्रॉफिट कमाना किसी गिनती में नहीं रखा जा सकता है.

प्रॉपर्टी को मेंटेन करने का भी खर्चा आता है इसलिए अगर आप रियल एस्टेट को सेफ इन्वेस्टमेंट समझकर पैसे लगा रहे हैं, तो एक बार और सोच लीजिए.

अब सेफ इन्वेस्टमेंट के नामों में फिक्स डिपॉजिट आता है इसके रिटर्न सेफ तो कहे जा सकते हैं पर अच्छे नहीं. इन्वेस्टमेंट का बेसिक रूल यह कहता है कि ऐसा प्रोडक्ट चुना जाए जो कम से कम Inflation को यानी कि महंगाई को बीट करे लेकिन जिस तरह से महंगाई बढ़ती है उसी रेशो में फिक्स डिपॉजिट जैसे सेव प्रोडक्ट्स का रिटर्न नहीं बढ़ता बल्कि इन पर मिलने वाला इंटरेस्ट टाइम के साथ घटता चला जा रहा है. मुझे अपने बचपन में देखिए एक एफडी याद है जिसमें 12 पर का इंटरेस्ट रेट लिखा था पर आज की तारीख में इस पर शायद ही कहीं आपको 6 से 7 पर ज्यादा इंटरेस्ट मिल पाएगा.

गोल्ड की सच्चाई देखें तो ज्यादातर इंडियन घरों में सोना किसी इन्वेस्टमेंट के तौर पर नहीं बल्कि बच्चों की शादी की तैयारी के हिसाब से खरीदा जाता है. इसलिए हम ऐसे गहने खरीदते हैं जिन पर मेकिंग चार्जेस लगे होते हैं. अगर गहनों को बेचने का वक्त आएगा तो कौन सा ज्वेलर आपको मेकिंग चार्जेस भी वापस कर देगा. कुछ लोग कॉइंस खरीदते हैं यह गहने खरीदने से तो अच्छा ही है पर फिर भी गोल्ड के साथ सबसे बड़ा रिस्क है उसे संभालने का ऊपर से सोने की कीमतें बढ़ने घटने के पीछे जिओ पॉलिटिकल टेंशन डिमांड एंड सप्लाई माइनिंग और रिफाइनिग जैसे बहुत सारे फेक्टर्स जुड़े होते हैं. हर 10 साल में कम से कम दो से तीन साल ऐसे जरुर आते हैं जब सोने की कीमत एकदम से घट जाती हैं.

तो अलओवर इन्वेस्टमेंट को कम्पेयर करें तो किसी भी साल में सबसे ज्यादा रिटर्न स्टॉक मार्केट ने ही दिए हैं इसलिए ऑथर कहते हैं कि सिक्योर इन्वेस्टमेंट अपनी जगह है. पर अगर आपको आने वाले कल के साथ कदम मिलाकर चलना है तो गुड इन्वेस्टमेंट पर भी ध्यान देना होगा.

अगर आप सोच समझकर काम करें तो इस गुड इन्वेस्टमेंट में फिलहाल स्टॉक मार्केट से ऊपर कुछ भी नहीं आ सकता थोड़ी सी प्लानिंग इसे सेफ भी बना सकती है और प्रॉफिटेबल भी.

स्टॉक मार्केट का एक्सपर्ट कैसे बना जा सकता है?

अब हम यह समझते हैं कि स्टॉक मार्केट का एक्सपर्ट कैसे बना जा सकता है हर कोई यह सोचता है कि स्टॉक मार्केट में सिर्फ बहुत तेज दिमाग वाले लोग ही प्रॉफिट कमा सकते हैं. पर अगर मैं आपको उन जानेमाने लोगों के नाम बताऊं जो यहां नुकसान उठा चुके हैं तो आप हैरान रह जाएंगे चार्ल्स मुंगेर और वरन बफे भी कभी ना कभी अपना नुकसान करवा चुके हैं. एल्बर्ट आइं तक ने नोबल प्राइज में मिली ज्यादातर रकम स्टॉक मार्केट में लगाकर डुबो दी थी. यानी कि गलती किसी पर भी भारी पड़ सकती है.

स्टॉक मार्केट की सबसे अच्छी बात यह है कि यहां आपके बजट की कोई रोक टोक नहीं है. यानी कि ₹100 या उससे कम में भी आप इसे शुरू कर सकते हैं, तो शेयर मार्केट के एक्सपर्ट बनने के लिए आप बड़ी कंपनी को स्टडी करना शुरू कीजिए. इनकी हर डिटेल आपको आसानी से मिल जाती है.

आप कोई एक सेक्टर लीजिए जैसे बैंकिंग या फार्मा या फिर कोई ऐसा सेक्टर जो आपको दिलचस्प या आसान लगता हो और आप उसकी स्टडी करते हुए बीच में ही बोर होकर काम बंद ना कर दें. यह अच्छी तरह से समझ लें कि आप सिर्फ किसी स्टॉक में नहीं बल्कि उस बिजनेस में अपनी मेहनत की कमाई डाल रहे हैं. ऐसा सोचने से आपको अपने आप मेहनत करने का मोटिवेशन मिलता रहेगा.

कॉफी कैन इन्वेस्टिंग क्या है?

चलिए अब यह समझते हैं कि कॉफी कैन इन्वेस्टिंग क्या है यह वर्ड अमेरिका से आया है जब आम लोगों के बीच बैंकों का इतना चलन नहीं था तब लोग कॉफी के डिब्बोंमें पैसे कोई कीमती या जरूरी चीज रख दिया करते थे. यानी कि चीजें छिपाकर भूल जाओ इंडिया में इस कॉफी कैन की जगह ले रखी है राशन के डब्बो और तरह-तरह की बर्नियों में, जब कभी हमें पैसे चाहिए होते तो मां या दादी अपनी इसी तिजोरी से पैसे निकालकर हमारा काम चला देती.

लेकिन पैसे बचाना सिर्फ अच्छी आदत है जबकि इन्वेस्टमेंट करना समझदारी है, तो कॉफी कैन एक अच्छी बजटिंग और सेविंग टेक्नीक है और इसमें थोड़ा सा बदलाव करके इसे एक बेहतरीन इन्वेस्टमेंट स्ट्रेटेजी बनाया जा सकता है. कॉफी कैन इन्वेस्टमेंट नाम का वर्ड दुनिया के सामने रॉबर्ट किर्बी ने रखा उन्होंने इसे 1980 के दौरान तब ऑब्जर्व किया जब वो कैपिटल र्जन ट्रस्ट कंपनी के फाइनेंशियल एडवाइजर के तौर पर काम कर रहे थे.

इस दौरान एक क्लाइंट के मरने के बाद उनकी पत्नी रॉबर्ट के पास आई रॉबर्ट ने देखा कि वो क्लाइंट कंपनी की एडवाइस पर शेयर में इन्वेस्ट तो करते थे पर उनको कभी नहीं बेचते थे. इस क्लाइंट का पोर्टफोलियो बाकी लोगों से ज्यादा फायदे में था. यह पोर्टफोलियो देखते हुए रॉबर्ट को एहसास हुआ कि आज इसकी जो भी कीमत है उसका सिर्फ 20 % ही कुल इन्वेस्टमेंट किया है, जबकि बाकी 80 % तो पूरी तरह से प्रॉफिट ही है इसे परेटो प्रिंसिपल कहा जाता है.

यानी कि 20 % कॉस्ट और 80 % आउटकम, हालांकि उनके खरीदे स्टॉक में से ज्यादातर तो ऐसे थे जो मामूली फायदे या फिर घाटे में भी थे पर कुछ स्टॉक्स ने अच्छी ग्रोथ दिखाई थी. जबकि कुछ गिने चने स्टॉक्स ऐसे थे जिनकी कीमत इतनी बढ़ गई थी जिसने पूरे पोर्टफोलियो को प्रॉफिटेबल बना दिया था.

रॉबर्ट ने इसे कॉफी कैन इन्वेस्टमेंट का नाम दिया आपको भी यही करना है यानी कि कुछ अच्छे स्टॉक चुनकर इन्वेस्टमेंट कर दें और फिर उनको भूल जाइए. ऑथर कहते हैं आपको बस 15 से 20 स्टॉक्स खरीदने हैं और इनको कम से कम 10 साल अपने पास रखना है. अब सवाल आता है कि जिस मार्केट में लगभग 2000 कंपनियां लिस्टेड हो तो वहां अच्छे 20 स्टॉक्स को कैसे चुनना है.

2000 से ज्यादा लिस्टेड कंपनियां में से अच्छे स्टॉक्स को कैसे चुनना है

इसके बारे में हम आगे बात करेंगे सर आइक न्यूटन के स्टॉक में इन्वेस्ट करने के बारे में एक फेमस किस्सा है 1720 में उन्होंने साउथ सी कंपनी में इन्वेस्ट किया था उस टाइम किया जाने वाला एक ट्रेंडी इन्वेस्टमेंट था. कुछ टाइम बाद न्यूटन को ऐसा महसूस हुआ कि मार्केट कंट्रोल से बाहर जा रहा है उन्होंने अपने स्टॉक को जिस दाम पर खरीदा था उससे डबल दाम पर बेचा.

कुछ महीनों बाद न्यूटन एक बार फिर मार्केट ट्रेंड को देखकर इन्वेस्ट करने के सोचने लगे उन्होंने दोबारा साउथ सी कंपनी में इन्वेस्ट किया जब उन्होंने पहली बार स्टॉक खरीदे थे उसके मुकाबले इस बार स्टॉक बहुत ज्यादा महंगे हो चुके थे. धीरे-धीरे स्टॉक के दाम कम होते गए जिससे न्यूटन को इस बार 20000 पाउंड से भी ज्यादा का नुकसान हुआ.

लोगों को लगता है कि वह इन्वेस्टमेंट करने में फेल इसलिए हो जाते हैं क्योंकि वह स्मार्ट नहीं है पर न्यूटन आज तक के सबसे स्मार्ट लोगों में से एक थे तो फिर ऐसा क्यों हुआ. असली रीजन यह है कि वह जो महसूस कर रहे थे उसके हिसाब से इन्वेस्ट करते थे ना कि रिसर्च के हिसाब से.

रॉबर्ट किरवी कैपिटल ग्रुप लॉस एंजलिस में इन्वेस्टमेंट मैनेजर थे यह कंपनी अमीर लोगों को इन्वेस्टमेंट एडवाइस देती है रॉबर्ट किरवी के पास अपने क्लाइंट की बहुत सी सक्सेस स्टोरी हैं पर एक स्टोरी है जो इन सबसे अलग है. वो क्लाइंट एक बूढ़ा रिटायर्ड इंसान था किर्बी अपने क्लाइंट को बहुत सारे स्टॉक के बारे में बताते थे फिर वह किर्बी के बताए हुए हर स्टॉक से 5000 डॉलर का स्टॉक खरीदते थे.

लेकिन वह कभी भी स्टॉक को बेचते नहीं थे करीब 10 साल में वो बूढ़ा आदमी मिलियनेयर बनने के नजदीक था किर्बी बहुत खुश थे उन्होंने इस तरीके के इन्वेस्टमेंट के स्टाइल को कॉफी कैन इन्वेस्टमेंट कहा कॉफी कैन इन्वेस्टिंग के लिए दो आसान सवाल हैं जो आपको स्टॉक खरीदने से पहले पूछने चाहिए.

पहला है मुझे कौन सा स्टॉक खरीदना चाहिए दूसरा जो स्टॉक मैंने खरीदा है उसे मुझे कितने टाइम के लिए रखना चाहिए यह सवाल आसान लगते हैं पर इनका जवाब देना बहुत मुश्किल है न्यूटन ने इन सवालों के जवाब देने की कोशिश नहीं की थी इसलिए उस स्टॉक में इन्वेस्टमेंट किया था जिसे सब खरीद रहे थे. जो लोग इस तरह के इन्वेस्टमेंट
करते हैं वह सच्चे इन्वेस्टर नहीं होते उन्हें पंटर कहा जाता है पंटर अपने दोस्तों से मिले टिप के हिसाब से शेयर खरीदते हैं.

व बिना जाने की कोई कंपनी आखिर करती क्या है उसमें इन्वेस्टमेंट कर देते हैं वह अपने इन्वेस्टमेंट से जुड़े रिस्क को नहीं समझते इसलिए सारे पंटर फेल ही होते हैं. सच्चे इन्वेस्टर के लिए इन दो सवालों का जवाब साफ होता है कॉफी कैन इन्वेस्टिंग सबसे अच्छी स्ट्रेटेजी है. आपको 10 से 25 बहुत अच्छी क्वालिटी के स्टॉक को चुनना चाहिए फिर उन्हें 3 से 10 साल तक के लिए रखना चाहिए.

अच्छी क्वालिटी के स्टॉक कौन से हैं

अब आप ये कैसे डिसाइड करेंगे कि अच्छी क्वालिटी के स्टॉक कौन से हैं पहला कंपनी का 100 करोड़ से ज्यादा मार्केट कैपिटलाइजेशन होना चाहिए. मार्केट कैपिटलाइजेशन उस कंपनी के सारे शेयर का टोटल वैल्यू होता है. अच्छे क्वालिटी के स्टॉक का दूसरा फीचर होता है रिटर्न ऑन कैपिटल एंप्लॉयड या (ROCE) इसका मतलब होता है कि वो फायदा जो कंपनी को खुद पर पैसे इन्वेस्टमेंट करने से मिलता है.

आपके कॉफी कैन इन्वेस्टमेंट में सिर्फ वही स्टॉक्स होने चाहिए जिनका ROCE 15 % से ज्यादा है ROCE सबसे मेन फैक्टर है जो स्टॉक की वैल्यू कितना ग्रो करेगी इसे डिसाइड करता है. स्टॉक मार्केट के अलग-अलग फैक्टर की वजह से कंपनीज बहुत तेजी से ऊपर जा सकती हैं और नीचे आ सकती हैं. लेकिन लंबे टाइम में एक बिजनेस कभी भी अपने ROCE से ज्यादा रेट पर नहीं बढ़ता है.

कभी-कभी शेयर होल्डर को फायदा किए बिना ही बिजनेस बहुत बड़े रेट से बढ़ सकता है इसका सबसे अच्छा एग्जांपल है एयरटेल 2007 से 2017 तक मार्केट का 20 से 24 % कैप्चर करके रखा. टेलीकॉम सेक्टर हर साल करीब 40 % से ग्रो कर रहा है. हालाकि एयरटेल अपने इन्वेस्टर को ज्यादा फायदा नहीं दे रहा था. 2017 का एक शेयर 2007 के एक शेयर के मुकाबले 2% कम कीमत का था.

ऐसा इसलिए क्योंकि एयरटेल अपनी कमाई को बिज़नस को बढ़ाने में लगा देता है. आखिर उन सारे पैसों से इन्वेस्टर की कभी कोई हेल्प नहीं हुई. अच्छे कुवालिटी के शेयर ढूँढने के बाद आपको ये डीसाइड करना है होगा की आपको उसे कब तक रखना है.

इस बारे में 2000 से लेकर 2017 तक एक स्टडी की गई थी जिसमें पता चला कि एक कॉफी कैन पोर्टफोलियो या सीसीपी लगातार दूसरी तरह के इन्वेस्टमेंट को हरा सकता है. 3 सालों में कॉफी कैन पोर्टफोलियो से पॉजिटिव रिजल्ट मिलने के चांस 95 पर हो गए इसका मतलब है कि आपके पैसे बर्बाद नहीं होंगे 5 सालों में आपके पैसों का हर साल 99% बढ़ने के 95 % चांस हैं.

इस बताई गई 17 साल की स्टडी में सीसीपी हर साल 24 से 25% बढ़ा था किसी स्टॉक को लंबे टाइम तक रखने से कंपाउंडिंग का फायदा मिलता है यह टाइम के साथ आपके प्रॉफिट को बहुत ज्यादा बढ़ा देता है. इन बताए गए दो मेन फीचर्स के साथ कॉफी कैन पोर्टफोलियो के तीन और फीचर हैं पहला इसमें ऐसी कंपनियों का अवॉइड करना होता है जो ग्रो करने के लिए पैसे उधार लेती हैं. ऐसी कंपनियों की मैनेजमेंट लोन
वापस करने पर ही ज्यादा ध्यान देती हैं यह शेयर होल्डर के लिए प्रॉफिट कमाने पर ज्यादा ध्यान नहीं देती.

साथ ही इन कंपनियों की ROCE उनके लोन लेने की एबिलिटी पर डिपेंड करती है यह इसे अनस्टेबल और रिस्की इन्वेस्टमेंट बना देता है. पावर, स्टील और रियल एस्टेट के सेक्टर में यह दिक्कत बहुत ज्यादा होती है. अगला फीचर है कंपनी के पास स्ट्रेटेजिक एसेट होते हैं जो चीज किसी कंपनी को स्पेशल बनाती है वो है उसके इनटेंजिबल एसेट्स इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी इनटेंजिबल एसेट्स कहलाते हैं.

इसका मतलब है पेटेंट लाइसेंस या एक्सपर्टाइज्ड है जिन कंपनियों के ये एसेट मजबूत होते हैं और उनका कल्चर एंप्लॉई कस्टमर और सप्लाई के साथ अच्छा रिलेशन बनाता है. ऐसी कंपनियां लंबे टाइम में कामयाब होती हैं आखिरी फीचर है बिजनेस टू कस्टमर या बी टू सी कंपनियों पर ध्यान देना. इसका मतलब है वैसी कंपनी जिनके क्लाइंट हमेशा उनके पास आते आते हैं इसका दूसरा अल्टरनेटिव है बिजनेस टू बिजनेस या बी टू बी कंपनी जिनके क्लाइंट दूसरे बिजनेस होते हैं.

बी टू सी कंपनी ज्यादातर फूड ब्यूटी या बैंकिंग के सेक्टर में होती हैं यह कंपनी अपने कस्टमर को रेगुलर सामान बेचती हैं उनका कस्टमर के साथ करीबी रिलेशन होता है
और यह ट्रेंड बनाती है इसलिए बी टू सी कंपनी लंबे टाइम में अच्छा परफॉर्म करती है.

अच्छे स्टॉक कैसे चुने?

अब यह समझते हैं कि अच्छे स्टॉक कैसे चुने ऑथर कहते हैं कि बस पांच चीजों का ध्यान रखकर भी आप लिस्ट बना सकते हैं.

पहले नंबर पर है मार्केट कैपिटल आप इसे कंपनी साइज भी कह सकते हैं तो हर वह कंपनी जिसका मार्केट कैप 100 करोड़ से कम हो उसका नाम लिस्ट से हटा दे असल में इन कंपनियों के बारे में आपको बहुत ज्यादा या सही इंफॉर्मेशन नहीं मिल पाएगी कभी-कभी ऐसा भी हो जाता है कि यह कंपनी गलत डाटा दे देती हैं जबकि हर बड़ी और रेपुटेड कंपनी का ऐसा करने की पॉसिबिलिटी कम रहती है. क्योंकि इनके लिए अपना नाम अपनी ब्रांड वैल्यू बहुत मायने रखती है.

दूसरा पैरामीटर है ROCE यानी कि रिटर्न ऑन कैपिटल एंप्लॉयड जिससे हमें यह पता चलता है कि कंपनी अपने कुल इन्वेस्टमेंट में से कितना प्रॉफिट कमा रही है इसलिए रोज जितना ज्यादा होगा किसी कंपनी के लिए ग्रोथ की पॉसिबिलिटी उतनी ज्यादा होगी अब जिन कंपनियों का रोज 15% से कम है उनका नाम हटा दें यानी कि 2000 कंपनी की लिस्ट में से शायद आधी से ज्यादा लिस्ट तो छट गई होगी पर यहां 15% की वजह क्या है देखिए अगर आपको एफडी करने से 6 से 7% रिटर्न मिल रहा हो तो स्टॉक मार्केट के 7 से 8% वाले रिटर्न या म्यूचुअल फंड के 8 से 9% रिटर्न का मतलब क्या रह जाता है.

जबकि आप लंबे टाइम के लिए पैसा भी लगा रहे हैं और आपको बहुत स्टडी भी करनी है यानी कि आपका एक्टिव इवॉल्वमेंट होने वाला है इसलिए प्रॉफिट कम से कम 15 के आसपास तो होना ही चाहिए.

तीसरा पैरामीटर है एनुअल ग्रोथ रेट और इसके लिए हमें जीडीपी ग्रोथ और इंफ्लेशन से कंपेयर करना है इंडिया में पिछले 10 सालों में यह लगभग 6 से 9 पर के बीच रही है इन्वेस्टमेंट के लिए आपको ऐसे स्टॉक्स को चुनना है जो लगभग 10 पर के एनुअल रेट से ग्रो कर रहे हो वरना छोटे-मोटे प्रॉफिट से आप पैसे तो बढ़ा लेंगे लेकिन परचेसिंग पावर नहीं बढ़ेगी यानी कि आपका कैपिटल एप्रिसिएशन आने वाले वक्त के हिसाब से काम नहीं आएगा तो अब आपका काम आसान हो गया है. आप आपको 100 करोड़ से ज्यादा की मार्केट कैप वाली कंपनियां लेनी है जिनका पिछले 10 सालों में रोज 15 % से ज्यादा रहा हो और एनुअल ग्रोथ रेट कम से कम 10 % रही हो.

हालांकि इनमें से 2 साल ऐसे हो सकते हैं जब कंपनी थोड़ी ढीली रही हो जैसा हमने कोविड के दौरान देखा था रशिया और यूक्रेन की वॉर से भी कुछ सेक्टर पर असर हुआ है तो इन बातों पर भी गौर करना होगा.

अगला फिल्टर है कंपनी की ब्रांड वैल्यू और आखिर है कंपनी की यूएसबी यानी कि उनकी मोनोपोली और कॉम्पिटेटिव एडवांटेज क्या है जो भी इन्वेस्टमेंट इस तरह के पोर्टफोलियो बनाकर किए गए थे उनका परफॉर्मेंस सबसे अच्छा रहा था यहां तक कि 2008 के दौरान दुनिया भर में आई मंदी में भी इन पर कोई खास असर नहीं डाला पर कुछ लोगों के मन में सवाल भी आएगा कि आखिर यह तरीका इतना अच्छा साबित कैसे हो सकता है इसकी वजह है कि जितनी बार आप ट्रांजैक्शन करते हैं तो ब्रोकरेज लगती है जबकि लॉन्ग टर्म तक इन्वेस्टमेंट रखने पर यह खर्च कम से कम रह जाते हैं.

यानी कि कॉफी कैन इन्वेस्टमेंट एक लो कॉस्ट स्ट्रेटेजी है दूसरा आपको टैक्स बेनिफिट
मिल जाते हैं मार्केट में आने वाली उतार-चड़ाव से बचाव हो जाता है और इन सब से आपका कैपिटल एप्रिसिएशन ज्यादा होने लगता है अब यह समझते हैं कि इन्वेस्टमेंट से रिस्क को कैसे घटाएं बेंजामिन ग्राहम जिन्हें फादर ऑफ वैल्यू इन्वेस्टिंग कहा जाता है उनका एक फेमस कोट है “Successfull investing is managing risk, not avoiding it”

एक इन्वेस्टर के लिए सबसे बड़ी चिंता की बात होती है कि उसके इन्वेस्टमेंट में रिस्क भी कम से कम रहे अब हमने तो यह समझ लिया कि स्टॉक कैसे चुनने हैं और उनको लंबे टाइम तक क्यों होल्ड करना है पर क्या यह सारे स्टॉक आगे चलकर अच्छी तरह परफॉर्म करते ही रहेंगे. जवाब है बिल्कुल नहीं हम स्टॉक का सिलेक्शन कंपनियों के आज की और बीते हुए कल को देखकर करते हैं जबकि आने वाले कल के बारे में किसी को पता नहीं होता तो इस पॉसिबिलिटी से इंकार नहीं किया जा सकता कि रिजल्ट बदल सकते हैं.

पर अगर आपने अपने पोर्टफोलियो को डायवर्सिफाई किया है तो चाहे कुछ स्टॉक में नुकसान भी हो लेकिन फिर भी आपके कुछ स्टॉक इतनी ग्रोथ करेंगे कि ना सिर्फ नुकसान की भरपाई हो जाए बल्कि ढेर सारा प्रॉफिट भी हो तो यहां सबसे पहली सीख ये मिलती है कि आप एक ही स्टॉक में सारा पैसा ना लगा दें अपने पोर्टफोलियो में वरायटी रखें इन्वेस्टमेंट age और फैमिली भी एक बड़ा रोल प्ले करती है.

जैसे एक 24 साल के सिंगल लड़के के लिए इन्वेस्टमेंट की स्ट्रेटेजी अलग होगी उसने
अभी जॉब की शुरुआत की है उस पर कोई जिम्मेदारी नहीं है, और वह आगे कम से कम 30 से 35 साल और काम कर सकता है यानी कि अगर थोड़ा अग्रेसिव इन्वेस्टमेंट भी रहे तो उसके पास रिकवर करने का मौका है. जबकि 40 साल के मैरिड और दो बच्चे वाले इंसान के लिए इतना अग्रेसिव इन्वेस्टमेंट ठीक नहीं रहेगा. इसी तरह 60 की उम्र वाले इंसान के लिए इन्वेस्टमेंट और भी सावधानी से होना चाहिए.

लोग इन्वेस्टमेंट करते हुए अक्सर एक गलती और करते हैं और वह है दूसरों को कॉपी
करना यानी कि किसी दोस्त ने कोई स्टॉक खरीदा तो आपने भी वहीं पैसा लगा दिया अगर उसने कोई स्टॉक बेचा तो आपने भी बेच दिया जबकि ऐसा करना पूरी तरह से गलत है हर इंसान का फाइनेंशियल गोल और रिस्क लेने की ताकत अलग होती है इसलिए आपको फैसले अपने गोल और जरूरतों को ध्यान में रखकर करने चाहिए ना कि दूसरों को कॉपी करके इसके अलावा अपनी इन्वेस्टमेंट को टाइम टाइम पर चेक भी करते रहें.

यानी कि कंपनी कैसा परफॉर्म कर रही है आगे उसके प्लान क्या हैं और उनके पास किस तरह के ऑर्डर्स हैं इन सब से आप यह तो समझ ही सकते हैं कि आपको कोई स्टॉक रखना है और ज्यादा स्टॉक इकट्ठे करने हैं या फिर इनसे दूरी बना लेनी है तो अपने पोर्टफोलियो को डायवर्सिफाई कीजिए अपनी गोल बनाकर उनके हिसाब से फैसले लें और अपने इन्वेस्टमेंट पर नजर रखें.

इन्वेस्टमेंट के खर्चे को कैसे घटाया जाए

अब हम यह समझते हैं कि इन्वेस्टमेंट के खर्चे को कैसे घटाया जाए हमें स्टॉक मार्केट में इन्वेस्टमेंट करने के लिए किसी ना किसी ब्रोकरेज एजेंसी की जरूरत पड़ती ही है. यह एजेंसी सर्विस देने के बदले एक फीस चार्ज करती हैं इनमें एक्सपेंस रेशो स्टेंप ड्यूटी एग्जिट लोड जैसे भारी भरकर नाम सुनने में आते हैं हम इनको तीन कैटेगरी में बांट सकते हैं.

एक होता है ब्रोकरेज दूसरा है मैंडेटरी चार्जेस और तीसरे हिडन या इनविजिबल चार्जेस या कॉस्ट, ब्रोकरेज में हम उन चार्जेस को रखते हैं जो हमारा ब्रोकर अपनी सर्विस देने के बदले हमसे वसूल करते हैं मैंडेटरी चार्जेस सरकार गवर्नमेंट या फिर सेबी की तरफ से लगाए जाते हैं वैसे तो अब गवर्नमेंट और सीबी के कड़े नियमों की वजह से ऐसे कोई खास हिडन चार्जेस नहीं रह गए हैं और ये अब इंट्राडे ट्रेडिंग पर ही ज्यादा अप्लाई होते हैं फिर भी कुछ सर्विसेस जैसे कांट्रैक्ट नोट्स भेजना एसएमएस अलर्ट करियर चार्जेस इन जैसे चार्जेस को आप हिडन चार्जेस की गिनती में डाल सकते हैं.

अब जब आप यह बात समझ ही चुके हैं तो कोशिश कीजिए कि जहां भी हो सके ऐसे
चार्ज से बचा जा सके इस तरह आपका प्रॉफिट बढ़ता है. आप अपना डी मैट और ट्रेडिंग अकाउंट बनाते हुए ब्रोकरेज को कंपेयर कर सकते हैं. जहां आपको कम फीस दिखे वहां जुड़ जाएं.

पेशेंस और क्वालिटी कैसे एक दूसरे से जुड़े हुए हैं

अब हम यह समझते हैं कि पेशेंस और क्वालिटी कैसे एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. 1995 में फेमस इकोनॉमिस्ट रिचर्ड थेलर और श्लोमो बनारची ने एक पेपर पब्लिश किया था.
उसमें लॉस वर्जन नाम के कांसेप्ट की स्टडी की गई थी ये इंसानों का प्रॉफिट से ज्यादा
नुकसान पर ध्यान देने की टेंडेंसी होती है किसी नुकसान के लिए हमें जो अफसोस होता है वह सेम फायदे से मिलने वाली खुशी से ढाई गुना ज्यादा होता है. एक इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो के बारे में सोचिए जिसमें आपका फायदा आपके नुकसान से दो गुना ज्यादा है फायदे के बाद भी आप उस इन्वेस्टमेंट परअफसोस करेंगे.

आप अपने इन्वेस्टमेंट को तभी सही मानेंगे जब आपका फायदा आपके नुकसान से
कई गुना ज्यादा होगा एक स्टॉक को लंबे टाइम तक रखना लॉस वर्जन के साइड इफेक्ट को कम कर देता है बीएससी सेंसस इंडेक्स का एक एग्जांपल लेते हैं 1 साल तक अपने स्टॉक को रखने से फायदा होने के 68 पर चांसेस होते हैं आपके नुकसान होने का चांस 32 होता है. इसका मतलब है आपका फायदा होने के चांस आपके नुकसान होने के चांस से डबल से भी ज्यादा है 1 साल से कम टाइम नुकसान होने
की पॉसिबिलिटी को बढ़ा देता है यह आपको loss aversion के साइड इफेक्ट की तरफ ले जाता है.

करीब 20 साल तक का टाइम आपके नुकसान होने के चांस को 0% के नजदीक ले
जाता है इस तरह से आपका फायदा भी होगा और आप उससे खुश भी होंगे 10 साल स्टॉक रखने का परफेक्ट पीरियड है ये बहुत कम रिस्क के साथ हायर प्रॉफिट देता है.

आज आपकी स्टॉक मार्केट को लेकर बहुत सी गलतफहमियां दूर हो गई होंगी ना तो मार्केट में सिर्फ और सिर्फ खतरा है और ना ही यहां कोई मैजिक होता है. आपने यह सीख और समझ लिया है कि अच्छे स्टॉक कैसे चुने जाते हैं और ब्रोकरेज से होने वाले नुकसान को कैसे कम किया जाता है, अगर अभी भी आपको यह लगता है कि आप सही फैसला नहीं कर पा रहे हैं तो किसी एक्सपोर्ट से सलाह लें.

लेकिन आने वाले कल और अपने परिवार की भलाई के लिए इन्वेस्टमेंट जरूर करें. इन्वेस्ट करने का सबसे सही टाइम आज और अभी है यह मत सोचिए मार्केट डाउन होगी तो शुरू करूंगा या मेरी इतनी उम्र निकल चुकी है अब इन्वेस्ट करके क्या होगा. मार्केट की टाइमिंग करने की जगह मार्केट में टाइम देने को इंपॉर्टेंस दें अभी हम यह सोच कर कर देते हैं. कि चलो कोई बात नहीं अगर स्टॉक उम्मीद के मुताबिक ना निकला तो इसे बेच देंगे पर अगर आपको यह कह दिया जाए कि बस आपको गिने-चुने स्टॉक में ही पैसा लगाना है.

वो भी साल में एक या दो बार तो आप भी बहुत सोच समझकर और अच्छी तरह किसी स्टॉक की स्टडी करके ही आगे बढ़ेंगे जब आप कोई पोर्टफोलियो बना लेंगे तब ये मुश्किल आएगी कि मार्केट ऊपर आने पर आपका मन होगा कि क्यों ना स्टॉक को बेचकर प्रॉफिट बुक कर लूं अगर मार्केट ज्यादा नीचे जाते हुए दिखा तो मन में यह होगा कि क्यों ना स्टॉक से एग्जिट कर लूं लेकिन अपना फोकस और पेशेंस बनाए रखें और लंबे टाइम तक अपनी इन्वेस्टमेंट को बने रहने दें ताकि आप अच्छा प्रॉफिट कमा सकें.

⚠️ डिस्क्लेमर:
यह लेख केवल सूचना के उद्देश्य से है। निवेश के फैसले लेने से पहले वित्तीय सलाहकार से परामर्श अवश्य करें।

Amitesh Raj

नमस्कार दोस्तों, मैं Mr. Amitesh Bedia, Hintwebs वेबसाइट का ओनर और ऑथर भी हूँ, मुझे किसी भी तरह की जानकारी साझा करना बहुत अच्छा लगता है, चाहे वो टेक्नोलॉजी से जुड़ी हो या नॉलेज की बातें या फिर इन्टरनेट से जुड़ी कोई बात हो सिखने और दूसरों को इसे जुड़ी समस्याओं को दूर करना ही मेरा लक्ष्य है.